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चाँद

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जब कोई चिड़िया चहकती है,

सूरज उगता है,

हवा चलती है,

तभी मेरी क़लम भी थिरकती है,

जब सुबहसुबह प्रक्रति शृंगार करती है,

मैं उसको निहारती हूँ,

पानी में तैरते हुए,

या तैरने की कोशिश करते हुए,

ऊपर आसमान में अपनी नज़रें फिराती हूँ,

बादल उड़ते नज़र आते है,

रूयी जैसे हल्के बादल,

हल्के-सफ़ेद, हल्के-नीले, हल्के-स्याह,

भागे चलें जाते है,

दूरदूर उन लोगों की पुकार पूरी करने जो उनहें चाहते है,

जिनको रोटी नसीब नहीं होगी या प्यास से उनके गले और होंठ सूख जायेंगे!

चिड़िया चहकती है,

जैसे नाश्ते की तैयारी कर रही हो,

नारियल के ऊँचे पेड़ हवा में लहलहाते है,

लदे है वो नारियल से,

मैं उन्हें कहती हूँ इतनी ज़ोर से मत हिलो,

तुम्हारे नारियल हमारे सिर पर गिरे तो,

आम से लदा पेड़ भी हवा में थिरकता है,

उसके लालहरे आम नीचे ज़मीन तक लटकते है,

मानो न्योता दे रहे हो दोस्ती का,

चाँद चमक रहा है एक कोने में होले होले से,

पर उसको कोई नहीं देख रहा,

सब तैरने में व्यस्त है,

कोई हाथ काम चला रहा है,

तो कोई पैर,

सब चाँद को बस शाम को ही ढूँढते है,

आसमान में,

पर क्या हम उसे एक नज़र भी नहीं देखेंगे,

अगर बिन बुलाए वो पधारे?

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1 thought on “चाँद”

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