कहानिया और क़िस्से तो बहोत सुने,
पर अब ख़ुद के बनाने की इच्छा है,
दूसरे कवियों के शब्दों के साथ तो मैं बहोत उड़ी,
पर अब औरों को उड़ाने की इच्छा है,
वक़्त के साथ खिलवाड़ तो बहोत किया,
पर अब उसको सर-आँखो पर बिठाने की इच्छा है,
हम करेंगे, हम करेंगे, हम करेंगे,
ये कहते-कहते समय बहोत बीत गया,
पर अब अपने वजूद को तराज़ू में ना नाप पाय,
ऐसा बनाने की इच्छा है,
लोग आते है,
लोग जाते है,
पर हमें तो अपना नाम इतिहास के कुछ पन्नो पर छोड़ जाने की इच्छा है,
जैसे रबिंदरनाथ ने सुंदर–सुंदर शब्दों को पिरो वाक्य बनाए थे,
वैसे ही हमें भी शब्दों के महकते हार बनाने की इच्छा है,
हमें तो अपना नाम इतिहास के कुछ पन्नो पर छोड़ जाने की इच्छा है!